चैत्र महीने की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर 9 दिनों तक चलने वाले इस पर्व को चैत्र नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। चैत्र प्रतिपदा से ही नव संवत्सर प्रारंभ होता है, ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने इस दिन पृथ्वी कि रचना की थी इसलिए यह नौ दिन और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, चैत्र नवरात्रि में देवी दुर्गा, ब्रह्मांड और उसके भीतर व्याप्त सभी जीव जन्तुओं को उनके जन्म का स्मरण करवाती हैं । ऐसी मान्यता है कि देवी दुर्गा को ब्रह्मांड के निर्माण का काम सौंपा गया था, इसलिए इस त्योहार को व्यापक रूप से हिंदू नववर्ष के आरंभ के रूप में भी मनाया जाता है।

श्रीराम की भक्ति से प्रसन्न होकर देवी माॅं ने उनको लंका पर विजय प्राप्ति का आशीर्वाद प्रदान किया था। जिसके बाद भगवान राम ने लंका नरेश रावण को युद्ध में हराकर उसका वध कर, लंका पर विजय प्राप्त कर ली थी। तब से चैत्र मास के इन प्रारंभिक नौ दिनों को नवरात्रि के रूप मनाया जाता है।

नवदुर्गा और आयुर्वेद :-

एक मत यह कहता है कि ब्रह्माजी के दुर्गा कवच में वर्णित नवदुर्गा नौ विशिष्ट औषधियों में व्याप्त हैं।

(1) प्रथम शैलपुत्री (हरड़) : कई प्रकार के रोगों में काम आने वाली औषधि हरड़ हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप है। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है। यह पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है।

(2) ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) : ब्राह्मी आयु व याददाश्त बढ़ाकर, रक्तविकारों को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है। इसलिए इसे सरस्वती भी कहा जाता है।

(3) चन्द्रघण्टा (चन्दुसूर) : यह एक ऐसा पौधा है जो धनिए के समान है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं।

(4) कूष्माण्डा (पेठा) : इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो रक्त विकार दूर कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिक रोगों में यह अमृत समान है।

(5) स्कन्दमाता (अलसी) : देवी स्कन्दमाता औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त व कफ़ रोगों की नाशक औषधि है।

(6) कात्यायनी (मोइया) : देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका। इसके अलावा इन्हें मोइया भी कहते हैं। यह औषधि कफ़, पित्त व गले के रोगों का नाश करती है।

(7) कालरात्रि (नागदौन) : यह देवी नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती हैं। यह सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी और मन एवं मस्तिष्क के विकारों को दूर करने वाली औषधि है।

(8) महागौरी (तुलसी) : तुलसी सात प्रकार की होती है सफ़ेद तुलसी, काली तुलसी, मरूता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये रक्त को साफ़ कर ह्वदय रोगों का नाश करती है।

(9) सिद्धिदात्री (शतावरी) : दुर्गा का नौवाँ रूप सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी शतावरी कहते हैं। यह बल, बुद्धि एवं विवेक के लिए उपयोगी है।

हमारे अंदर 36 तत्व मौजूद हैं। पहला है पृथ्वी तत्व, दूसरा है जल, अग्नि, वायु, आकाश। सबसे अंतिम और सबसे परिष्कृत तत्व है - शिव तत्व। पृथ्वी तत्व सबसे स्थूल है, शिव सबसे सूक्ष्म।

जब हम दुर्गा सप्तशती का जाप करते हैं (मार्कंडेय पुराण से देवी महात्म्य के 700 छंदों का जिक्र करते हुए, जो देवी मां की स्तुति के लिए समर्पित है), तो एक श्लोक है जो कहता है, 'या देवी सर्व-भूतेषु भ्रांति रूपेण संस्थिता; नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नमः' ( जिसका अर्थ है:- हे दिव्य मां! मैं आपको नमन करता हूॅं, आप जो भ्रांति के रूप में प्रकट हैं - सभी जीवित प्राणियों में भ्रम का तत्व)।

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